मनक़बत
ऐ साहिबे मैखाना, पीकर तेरा पैमाना |
सब होश गँवा बैठा, मै हो गया दीवाना ||
अब इतनी गुज़ारिश है, इकराम ये फरमाना |
या मुझको समो लेना, या मुझमे समा जाना ||
इस दिल के गुलिस्ताँ को, आबाद किया तुमने |
आते न जो तुम इसमें, रह जाता ये वीराना ||
तन मन तो मै पहले ही, सब वार चुका तुमपे |
अब जान भी हाज़िर है, मकबूल हो नजराना ||
मै छोड़ के अब तुमको, जाऊं तो कहाँ जाऊ |
तुमसे ही शनासा हूँ, दुनिया से हूँ बेगाना ||
आकर तेरी चौखट पर, मै हो गया शैदाई |
देखा जो तेरा मैंने , अंदाज़े करीमना ||
अब आँख मिचौली का, मै खेल न खेलूँगा |
लो ढूँढ लिया तुमको, अब मत कहीं छुप जाना ||
अरमान यही दिल में, रखता है 'हिलाल' अपने |
नज़रों से पिलाकर कर तुम, कर दो इसे मस्ताना ||
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