राज़ दिल का छुपाया बहुत है
आंसुओं को सुखाया बहुत है
मै समझता था जिसको शनासा
आज वो ही पराया बहुत है
मैंने जिसको हसाया बहुत था
उसने मुझको रुलाया बहुत है
अब कोई और खेले न दिल से
ये किसी ने सताया बहुत है
कर चला है वो नाराज़ मुझको
मैंने जिसको मनाया बहुत है
उसके लफ्जों में हूँ आज भी मै
वैसे उसने भुलाया बहुत है
तेरी संजीदगी कह रही है
तू कभी मुस्कुराया बहुत है
क्या हुआ जो समर अब नहीं है
इस शजर का तो साया बहुत है
तुम "हिलाल"अपने दिल को टटोलो
कोई इसमें समाया बहुत है
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