03 October 2010

बदला बदला सा मेरे हिंद का मंज़र क्यूँ है


बदला बदला सा मेरे हिंद का मंज़र क्यूँ है ,
आज हिन्दू में मुसलमान मै अंतर क्यूँ है ?

सोचता हूँ के ये परदेस मुक़द्दर क्यूँ है,
मेरा घर हद्दे नज़र से मेरी बाहर क्यूँ है ?

खुद ही इक बोझ बना रक्खा है दिल पे तुने,
जो तेरे दिल में है वो दिल के ही अन्दर क्यूँ है ?

लाख कोशिश के भी दाखिल न हुआ मै दिल में,
कांच का दिल तो सुना था तेरा पत्थर क्यूँ है ?

किसने तोडा मेरे दरया-ऐ-मुहब्बत का सुकूत,
एक अरसे से जो खामोश था मुज़्तर क्यों है?

साक़िया कितनी ज़रूरत है मुझे अब मय की,
ये बता आज भी ख़ाली मेरा साग़र क्यूँ है ?

कल तो देते थे सभी ज़र्फ़-ऐ-समंदर की मिसाल,
अब समंदर का मिज़ाज आपे से बाहर क्यूँ है?

"हम पुजारी भी नहीं और नमाज़ी भी नहीं "
फिर ज़मी पर कही मस्जिद कही मंदर क्यूँ है?

मेरे अहबाब तो महलों के मकीं बन बैठे,
मेरे घर पे अभी तक बांस का छप्पर क्यूँ है?

उनको बतलाओ के बुजुर्गों का करम है इस पर,
जो ये कहते है 'हिलाल ' अच्छा सुखनवर क्यूँ है?

No comments:

Post a Comment